डॉ o राजेंद्र प्रसाद

भारत देश के रत्न और बिहार के गौरव डॉ o राजेंद्र प्रसाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति थे। वे लगभग 10 वर्ष इस पद पर बने रहे। इस काल में देश कि अच्छी उन्नति हुई। उनकी सेवाएं अमूल्य और अनेक है।
राजेंद्र प्रसाद जी का जन्म 3 दिसंबर 1884 ईसवी को सारण जिले के जीरादेई नामक गांव में हुआ था। उनके बड़े भाई श्री महेंद्र प्रसाद ने अपने छोटे भाई राजेंद्र प्रसाद का लालन पालन किया था और ऊंची शिक्षा पाने में उनकी मदद कि थी । राजेंद्र बाबू ने पटना के o टी o के o घोष एकेडमी में शिक्षा पाकर कलकत्ता विश्वविद्यालय से सन् 1900 में प्रथम श्रेणी में इंट्रेंस परीक्षा पास की। इस परीक्षा में उन्हे सबसे अधिक अंक मिले। सारे देश में उनकी प्रसंशा हुई। सन् 1906 में उन्होंने एम o ए o की परीक्षा पास की और इसके बाद एम o एल o की परीक्षा भी। राजेंद्र बाबू अपनी सभी परीक्षाओ में सदा सर्वप्रथम होते रहे, यह उनकी शिक्षा और प्रतिभा की बहुमूल्य विशेषता है। सभी उनकी योग्यता और विद्वता पर मुग्ध थे। सारे देश में उनका नाम फैल गया । शिक्षा समाप्त कर लेने के बाद राजेंद्र बाबू ने पहले कलकत्ता में, फिर पटना होईकोर्ट में वकालत शुरू की। इससे उन्हे अच्छी सफलता मिली। वकालत चमक उठी। अच्छी आमदनी होने लगी। 
लेकिन महापुरूषों का जन्म अपने लिए नहीं हुआ करता । वे तो किसी बड़े काम को पूरा करके ही दम लेते है। सन् 1917 में जब महात्मा गांधी ने चंपारण में अंग्रेजो के खिलाफ आवाज उठाई तभी राजेंद्र बाबू को महात्मा गांधी से भेंट हुई और वे उनके शिष्य हों गए । उन्होंने चलती वकालत को लत मर दी और देश कि सेवा को व्रत लिया । यद्यपि वे बराबर दमे से परेशान रहे तथापि  देश के लिए कठिन - कठिन परिश्रम से भागते नहीं थे । वे एक सच्चे , धूनी ,उत्साही , ईमानदार और परिश्रमी कार्यकर्ता थे। उनका शरीर दुबला - पतला था, किन्तु उनकी आत्मा बलवती थी। उन्होंने बिहार के संगठन का बीड़ा उठाया। पटना का सदाकत आश्रम उनकी अथक सेवा का फल है। जिसकी स्थापना कर उन्होंने बिहार में कांग्रेस कि जड़ जमाई और हिन्दू - मुस्लिम एकता को मजबूत किया । सन् 1906 में वे कांग्रेस में आ गए थे। सन् 1911 में वे कांग्रेस प्रतिनिधि हुए और सन् 1912 में अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के सदस्य हुए। कई वर्षो के तक उन्होंने मुजफ्फरपुर के लंगट सिंह कॉलेज और कलकत्ता के सिटी कॉलेज तथा लॉ कॉलेज में प्रोफेसर का कार्य किया। सन् 1919 में जब गांधी जी की देंखरेख में रॉलेट एक्ट के खिलाफ आंदोलन चला , राजेंद्र बाबू ने दिल खोलकर उनका साथ दिया। सन् 1920 के स्वतंत्रता - संग्राम , सन् 1921 के असहयोग - आंदोलन और सन् 1922,1939,1940 और 1942 के भिन्न - भिन्न राजनीतिक आंदोलनों में भाग लेने के कारण वे कई बार जेल गए। कई बार तो उन्हे पुलिस की लाठी भी खानी पड़ी। सन् 1947 में जब भारत स्वतंत्र हुआ, तब राजेंद्र बाबू पहले खाद्यमंत्री और फिर भारत के प्रथम राष्ट्रपति हुए। 28 फरवरी 1963 को भारत का यह साधु नेता सदा के लिए उठ गया।
राजेंद्र बाबू भारतीय संस्कृति और सामान्य जनता के प्रतिनिधि थे, इसलिए वे सबके प्यारे थे। वे सरल जीवन और ऊंचे विचार के जीते - जागते उदाहरण थे। उन्होंने जीवनभर भारतीय पोशाक पहनी , विदेशी वस्त्र कभी नहीं पहना। सादगी और सच्चाई के वे अवतार थे । उनका अंदर और बाहर का जीवन एकसमान था। वे गांधी जी के अनुयायियों में प्रथम थे।

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