नदी और वायु की तरह सहज होते चलें

ऐसा मान लेने में फायदा ही है कि सब भगवान का दिया और किया हुआ हैं। यह शिकायत अधिकांश लोगों की रहती है कि जब भी कोई काम करते है आसहज हो जाते है अशांति उतर आती है हमारे शास्त्रों में एक शब्द अच्छा आया है , निष्कमता मतलब जिस क्षण में जो भी कर रहे है सहज होकर करिए ।अगले क्षण क्या होगा , इसकी चिंता छोड़ अपने वर्तमान को क्षण में तोड़ दो।नदी की धारा और वायु का वेग , ये दो उदाहरण बड़े काम के हैं । नदी जब बहती है और राह में कहीं चट्टान आ जाती है तो वह शिकायत नहीं करती बल्कि उससे टकराकर दाएं- बाएं  से गुजर जाती है । वहीं नदी जब किसी मैदान से गुजरती है तो रेत पर होती हुई आराम से निकल जाती है अब यदि कोई नदी से पूंछे कि तुम चट्टान से तो टकराई , रेती से सहज निकल गई? तो वह कोई। प्रतिकार नहीं करते हुए बस यही उतर देंगी की जब जैसा हुआ , मै करती चली गई, ठीक ऐसा ही वायु के साथ है। जहां टकरना है, टकराई जहां खुला माहौल मिला वहा सहजता से बहती चली गई। एक भक्त भी ऐसे ही सहज होता है उसके लिए जिंदगी साईकोड्रमा की तरह है । बस अपना अभिनय करते जा रहे है क्योंकि भक्त जानता है कि ऊपर वाले ने हमे पहली सांस देते ही आखरी पल मौत कि अमानत बना दिया। यह विचार हमे भी सहजता प्रदान करेगा।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

बिहार ग्रामीण जीविकोपार्जन प्रोत्साहन समिति राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन

इंटरनेट तथा इसकी सेवाएँ

क्या बच्चों को सब बता रहे है