बदल रहा है भारतीय मतदाता का मिजाज
दुनिया के ट्रेंड्स पर नजर
आज की राजनीती में जितने के लिए आपको देश की समझ जरुरी है ,आपको जमीं पर कान रखना होगा और ट्रेंड्स को परखना होगा | इसके बाद आपको ट्रेंड्स के हिसाब से आगे बढ़ना सीखना होगा |बात चाहे राजनीती की हो या जीवन की अगर दुनिया बदल रही है तो उसमे प्रासंगिक बने रहने के लिए आपको भी बदलना पड़ेगा | जो ऐसा करेंगे वो बड़ा स्कोर बना पाएंगे |जो ऐसा नहीं कर सकेंगे ,वे शो से बाहर हो जायेंगे और अगले सीजन में दिखलाई नहीं देंगे |

बीते दशक में भारतीय राजनीति में कुछ ट्रेंड देंखे गए है ,जिनके बारे में अपेक्षा है कि वे समय के साथ और मजबूत होते चले जायेंगे | आज मतदाता के सोचने का तरीका बदल रहा है और कोई भी पार्टी इसकी उपेक्षा नहीं कर सकती | तो ये रहे वे पांच बिंदु जो भारतीय राजनीति की बदलती हुई हवा के बारे में हमें बताते है |
1 . वंशवाद का घटता मूल्य : एक समय था जब भारतियों को वंशवाद से प्यार था | नेता हो या अभिनेता अगर आपके माता या पिता भी उसी पेशे में थे और उनका अपना एक ब्रांड था तो इससे आपको बड़ा लाभ मिलता था | भारत के लोग सरनेम पर भरोसा करते थे | यह माना जाता था कि अगर हम किसी सितारे के बेटे की फिल्म देख सकते है तो पटना के किसी अनाम कलाकार की फिल्म क्यों देंखे ? या अगर हम प्रधानमंत्री के बेटे को वोट दे सकते है तो किसी ऐसे पूर्व -आईआरएस अधिकारी को वोट क्यों दे जो आज सड़को पर आंदोलन कर रहा है ? यह हमारे सोचने का तरीका था और ऐसा लगता था कि यह परिपाटी कभी बदलेगी नहीं | लेकिन आज हम इस तरह से नहीं सोचते | आज हम सोचते है कि किसी व्यक्ति ने ऐसा क्या किया है ,जो उसे उसके पिता या माँ कि विरासत के योग्य समझा जाए ? उसमे स्वयं कोई प्रतिभा है या नहीं ? आज ब्रांड वैल्यू का एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तांतरण सम्भव नहीं माना जाता है | अलबत्ता इसका यह मतलब नहीं है कि भारतीयों ने पूरी तरह से यु -टर्न ले लिया है और नेपोटिज्म के विरुद्ध मोर्चा खोल लिया है | वंश -परंपरा और विरासत का आज भी महत्त्व है , लेकिन योग्यता का महत्त्व भी इतना ही है | राजनीति में कांग्रेस और शिवसेना और मनोरंजन -जगत पर अनेक सुपर -सितारों की संतानों की विफलताएं इसका उदहारण है |
2 . जातिगत राजनीती का पतन : यह सच है कि जाति आज भी मायने रखती है | लेकिन एक बार फिर हम ट्रेंड्स की बात कर रहे है , पूर्ण बदलावों की नहीं | और ट्रेंड यह है कि आज के वोटर पहले कि तुलना में जाति के आधार पर कम वोट देते है | यही कारण है कि जाति की राजनीति करने वाली बसपा का पतन हो रहा है | अनेक राज्यों में आज भी उम्मीदवार की जाति का बड़ा महत्त्व होता है , लेकिन अमूमन यह प्राथमिक महत्त्व की बात नहीं रह गयी है |भाजपा अगर आज हिन्दू वोटों का एकीकरण कर पा रही है तो उसके पीछे भी यही कारण है | जातिगत राजनीति विलुप्त नहीं हो गयी ,लेकिन उसका असर जरुर कम हो रहा है |
3 . क्षेत्रीय पहचान का कम होना : भारत में सांस्कृतिक बहुलता है , लेकिन आज अनेक क्षेत्रो में क्षेत्रीय पहचान घट रही है और एक समेकित भारतीय संस्कृति उभरकर सामने आ रही है | कुछ इलाकों में क्षेत्रीय पहचाने आज भी मजबूत है , जैसे बंगाल ,पूर्वोत्तर और तमिलनाडु |इन जगहों की राजनीति पर क्षेत्रीय पार्टियों का दबदबा रहता है | लेकिन अनेक बड़े राज्यों में क्षेत्रीय पहचानो का महत्त्व घट रहा है | मराठी लोग अब केवल मराठी अस्मिता के नाम पर वोट नहीं देते | कर्नाटक ,आंध्रप्रदेश और तेलंगाना में भी क्षेत्रीय राजनीति की हैसियत कम हुई है | राजस्थान ,गुजरात ,यूपी और बिहार में क्षेत्रीय पहचान राजनितिक एजेंडा का हिस्सा नहीं रह गयी है |
4 . हिंदुत्व का उभार : शायद इसका कारण यह है कि हिन्दुओं से जुड़े प्रश्नों को अतीत में कभी भी इतना महत्त्व नहीं दिया गया था | इसका कारण जाति या अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की राजनीति था | या शायद सोशल मिडिया के कारण हिंदुत्व के प्रश्न उभरकर सामने चले आये है | आज हिन्दू -मुस्लिम समास्याओं और उससे जुडी राजनीति के भी अनेक संस्करण है | एक तरफ अतिवाद और कर्कश स्वर है तो दूसरी तरफ ऐसे मतदाता भी है ,जो चुपचाप रहकर हिन्दुओं से सम्बन्धी मसलों पर वोट देते है | कई इस तरह कि राजनीति का समर्थन नहीं कर रहा हूँ | बल्कि अपना दृष्टीकोण साझा कर रहा हु | यह भी आश्चर्य की बात है कि एक तरफ जहाँ जाति और क्षेत्र के आधार पर देश एकजुट हो रहा है ,वही धर्म सम्बन्धी प्रश्न आज भी राजनीति में अहम भूमिका निभा रहे है |
5 . कंटेट -प्रेरक नेताओं का उदय : किसी भ्रम में मत रहिये , आज के डिजिटल -जगत में सबकुछ कंटेट ही है | आज एक राजनेता जो भी कहता या करता है ,वह कंटेट है | उम्दा कंटेट न केवल दिलचस्प ,प्रासंगिक चतुराई पूर्ण होता है ,बल्कि उसमे एक भावनात्मक अपील भी होती है | अगर कोई नेता इन मानदंडों पर खरा उतरने वाला कंटेट डिलीवर नहीं कर सकता तो भारतियों के दिल और वोट जितने की उसकी संभावनाएं कम होती चली जाएँगी | केवल कुछ ही नेता आज ऐसा कर पाते है और ये वही है , जो हमेशा जीतते है |
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