जवाहरलाल नेहरू

पंडित जवाहरलाल नेहरू भारत के प्रथम प्रधानमंत्री थे। उन्होंने लगभग 17 वर्ष प्रधानमंत्री के पद पर रहकर देश की सेवा की। उनकी देखरेख में भारत की उन्नति हुई। विदेशो में भी हमारे देश की धाक जमी। वे राजनेता थे।
नेहरूजी का जन्म 14 नवंबर 1889 को प्रयाग में हुआ था। उनके पिता पं o मोतीलाल नेहरू इलाहाबाद के एक नामी वकील थे, जिनपर पश्मी सभ्यता का प्रभाव था। शुरू में जवाहरलाल नेहरू कि देखरेख का सारा प्रबंध एफ o टी o ब्रुक्स नामक एक अंग्रेज़ महिला द्वारा हुआ। उनकी प्रारंभिक शिक्षा घर पर हुई। सन् 1905 में नेहरूजी 15 वर्ष की अवस्था में इंग्लैंड गए। वहां उनका नाम सुप्रसिद्ध हैरो पब्लिक स्कूल में लिखाया गया। इसके बाद उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से विज्ञान लेकर बी o एस o सी o परीक्षा पास की। फिर उसी विश्वविद्यालय  से सन् 1910 में एम o ए o किया। सन् 1912 में बैरिस्टरी की परीक्षा पास कर वे भारत लौटे । इस तरह नेहरूजी ने सात वर्ष विदेश में शिक्षा पाई । उनके मन पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा। भारत लौटने पर उन्होंने बैरिस्टरी शुरू की। सन् 1916 में उनका विवाह श्रीमती कमला नेहरू से हुआ। 
नेहरूजी एक सच्चे भारतीय थे। उनसे देश की  दुर्दशा नहीं देखी गई। उन्होंने बैरिस्टरी को लात मार दी और देश की तथा जनता की सेवा करने का व्रत लिया। सन् 1016 में जब लखनऊ में कांग्रेस का अधिवेशन चल रहा था। उनकी भेंट महात्मा गांधी से हुई। इनपर गांधीजी का गहरा प्रभाव पड़ा । वे उनके सबसे बड़े भक्त और शिष्य बन गए। उन्होंने अमीरी की पोशाक उतार फेकी, बिलायती कपड़े जला दिए और सच्चे तपस्वी की तरह स्वाधीनता के युद्ध में कूद पड़े।  अब वे गांधीजी के नेतृव में स्वाधीनता के आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेने लगे। उन्होंने काफी नजदीक से भारतीय जनता की भैयांकर गरीबी देखी और देखी अंग्रेजी शासन में देश की दुर्दशा । सन् 1919 में उन्होंने जालियांवाला बाग में हुए अंग्रेजो के अत्याचार पर जनता के बीच एक जोशीला भाषण दिया। सन् 1921 में जब इंगलैंड के प्रिंस ऑफ़ वेल्स भारत आए। तब नेहरूजी ने आगे बढ़कर उनके सामने काला झंडा दिखाया। इसके लिए उन्हे जेल में ठूंस दिया गया। सन् 1923 में वे भारतीय कांग्रेस कमिटी के प्रधान हुए। सन् 1929 में वे लाहौर में हुए कांग्रेस - अधिवेशन के अध्यक्ष चुने गए। इसी अधिवेशन में भारत के पूर्ण स्वाधीन होने का प्रस्ताव पास किया गया। नेहरूजी सन् 1930, 1932, 1934, 1940 और 1942 के विभिन्न आंदोलनों में जेल की यात्रा करते रहे। अंग्रेजी शासन ने उन्हे 1942 से 1945 तक नजरबंद रखा  जेल में वे प्रायः पुस्तकों का अध्ययन करते, पुस्तक लिखते और देश की आजादी पर गंभीर चिंतन करते थे। 15 अगस्त 1947 को जब भारत स्वतंत्र हुआ तब सारी जनता ने उन्हें देश का प्रथम प्रधानमंत्री चुना। इस पद पर वे अपने जीवन के अंत तक बने रहे।
नेहरूजी भारत के वैसे जवाहर थे, जिनकी कीमत लगाई नहीं जा सकती। वे जनता के प्राण , सेवा के पथिक ,ईमानदार और सच्चे शासक थे। उनकी दृष्टि बड़ी व्यापक थी। इतना ही नहीं, वे कांग्रेस की आत्मा थे। उनकी मृत्यु के बाद लगता था। जैसे कांग्रेस की मृत्यु हो गई। गांधीजी के आदर्शो पर सही अर्थ में चलनेवाले में नेहरूजी सबसे आगे थे। वे समय की शक्ति पहचानते थे। जीवन के हर क्षण में व्यस्त और चुस्त रहते थे। हर दिन लगभग 18 -20 घंटे तक काम करते थे। उन्होंने भारत माता के चरणों पर अपने जीवन का वालिदान कर दिया था। ऐसा महान पुरुष किसी भी देश में युगों के बाद जन्म लेता है। दुखः की बात है कि नेहरूजी 27 मई 1964 को , अपने सारे गुणों को धरती पर छोड़ सदा के लिए संसार से विदा हो गए। 
नेहरूजी ने भारतीय जीवन को संगठित करने के अनेक व्यावहारिक उपाय बताए । हमारे आज के नेता यदि उनके मार्ग पर चले तो देश का और दुनिया का कल्याण हो। आज नेहरू का आभाव हमे बुरी तरह खटक रहा है। उन - सा महापुरुष हमारे देश में बार - बार जन्मे। 

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