ईसाई संप्रदाय और क्रिसमस

भिन्न- भिन्न देशों के ईसाई धर्म में समय - समय पर अनेक संप्रदायों का जन्म हुआ । फलतः क्रिसमस के आयोजन में विध्न - बाधाए आयी। 1644 ईसवी में इंग्लैंड के एक ईसाई संप्रदाय प्यूरिटन ने कानून बनाकर इसकी निंदा की और इसपर रोक लगा दी। 18वी शताब्दी में क्रिसमस ने एक नया रूप ग्रहण किया और इसे फिर से प्रकाश में आने को अवसर दिया। अब यह माना गया कि क्रिसमस न केवल आनंद उल्लास और मनोरंजन का साधन है, बल्कि गरीब लोगों को सेवा और उनके उत्थान में भी सहायक है। इसके द्वारा दिन - दुखियों की सेवा होनी चाहिए। इसके विपरित स्कॉटलैंड का प्रिजबीटरियन संप्रदाय क्रिसमस से उदासीन रहा। इस उतार - चढ़ाव के बावजूद सारे ईसाई संसार में 25 दिसंबर को क्रिसमस का त्योहार अपने - अपने ढंग से मनाया जाता है। ईसाई समाज में इसका न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक महत्व भी है। सच तो यह है कि क्रिसमस ईसाइयों के लिए सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है।
क्रिसमस का त्योहार कहीं बच्चो की मंगलकामनाओं के लिए कहीं पारिवारिक सुख - शांति के लिए और कहीं जातीय भाईचारे के रूप में मनाया जाता है। हर ईसाई देश में क्रिसमस की अपनी विशेषताएं और प्रथाए है, अपने रीति - रिवाज है । इस अवसर पर कुछ दिन पहले से ही दीपावली की तरह घरों कि सफाई और सजावट होती है। लोग अपने मित्रो और सगे - संबंधियों को अपने घर बुलाते है और प्रीतिभोज का आयोजन करते है। रात में घरों को रंग बिरंगे बल्बो से सजाते और रोशनी करते है। लोग नए - नए कपड़ों से सुसज्जित होकर समारोह में शामिल होते है और गिरजाघर जाकर प्रभु ईसा कि पुण्यस्मृती में प्राथनाएं करते है। इस दिन कई जगह गिरजाघरों में ईसा के बचपन को दर्शानेवाली दर्शनीय झाकियां बनाई जाती है। गिरजाघर में बाइबिल के कुछ अंश पढ़े और गाए जाते है। पादरी सबको आशीर्वाद देते है।

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